नई दिल्ली। हल्दी एक और नाम से प्रसिद्ध है। इसे इंडियन सैफर्न यानि 'भारतीय केसर' के नाम से भी जाना जाता है। हमारी सदियों पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति - आयुर्वेद में इसका जिक्र मिलता है। संस्कृत में, इसे "हरिद्रा" के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि भगवान विष्णु ने इसे अपने शरीर पर इस्तेमाल किया था। महान प्राचीन भारतीय चिकित्सकों चरक और सुश्रुत ने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को व्यवस्थित करते हुए इस पौधे के विभिन्न उपयोगों को सूचीबद्ध किया। यह दो तरह की होती है: पीली और काली।
'औषधि' के रूप में हल्दी का उपयोग प्राचीन भारतीयों द्वारा घावों, पेट दर्द, जहर आदि के इलाज में दैनिक जीवन में किया जाता था। काली हल्दी एक प्राकृतिक जड़ी-बूटी है, जो अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। काली हल्दी को देश के कुछ हिस्सों में ही उगाया जाता है। इसका इस्तेमाल दवाई बनाने के लिए भी होता है।
वैज्ञानिक रूप से कर्कुमा कैसिया या ब्लैक जेडोरी के नाम से जानी जाने वाली हल्दी की प्रजाति को हिंदी में काली हल्दी, मणिपुरी में यिंगंगमुबा, मोनपा समुदाय (पूर्वोत्तर भारत) में बोरंगशागा, अरुणाचल प्रदेश के शेरडुकपेन समुदाय में बेईअचोम्बा के नाम से भी जाना जाता है। यह बारहमासी है और चिकनी मिट्टी में नम वन क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपती है। ज्यादातर उत्तर-पूर्व और मध्य भारत में मिलती है। इसकी पत्तियों में गहरे बैंगनी रंग के धब्बे होते हैं।
इस हल्दी की जड़ या राइजोम (प्रकंद) का इस्तेमाल सदियों से पूरे भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में प्राकृतिक दवाओं में किया जाता रहा है। इस किस्म को किसी भी हल्दी प्रजाति की तुलना में करक्यूमिन की उच्च दर के लिए जाना जाता है। काली हल्दी को पारंपरिक रूप से पेस्ट के रूप में घावों, त्वचा की जलन और सांप और कीड़े के काटने को ठीक करने के लिए लगाया जाता है। इस पेस्ट में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं और पाचन संबंधी समस्याओं से राहत दिलाने के लिए भी लिया जाता है। घाव भरने के अलावा, काली हल्दी के पेस्ट को मोच और चोट पर लगाया जाता है ताकि दर्द से अस्थायी रूप से राहत मिल सके। माइग्रेन से जूझ रहे लोगों के माथे पर लगाया जाए तब भी सुकून देता है।
काली हल्दी का सेवन पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में लाभदायक है, जो पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। साथ ही, यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, जो शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है।
यही नहीं, काली हल्दी को त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद माना गया है। बताया जाता है कि काली हल्दी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाती है और इसके इस्तेमाल से बाल भी मजबूत होते हैं।
इसके साथ ही, काली हल्दी का सेवन डायबिटीज और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। काली हल्दी डायबिटीज को तो नियंत्रित करती ही है। साथ ही, ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होती है। इसके अलावा, इसमें एंटी-कैंसर गुण होते हैं, जो कैंसर की रोकथाम में मदद करते हैं।
काली हल्दी नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। इसके रूप रंग के कारण इसका संबंध 'मां काली' से बताया जाता है। काली जो जीवन, शक्ति और मां प्रकृति की प्रतीक हैं। काली नाम 'काला' का स्त्रीलिंग रूप है। काली हल्दी के गूदे का रंग नीला होता है जो देवी की त्वचा के नीले रंग की याद दिलाता है, और प्रकंद (राइजोम) का उपयोग अक्सर देवी के लिए काली पूजा में किया जाता है। तो इस तरह धार्मिक, आध्यात्मिक और औषधीय गुणों की खान है काली हल्दी, जिसका इस्तेमाल कई समस्याओं से निजात दिलाता है।